बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)सरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
अथवा
मुगलकाल में भू-काश्तकारों की स्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
ग्रामीण समाज
सोलहवीं और सत्रहवीं संदियों के दौरान भारत की आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा गांवों में निवास करता था। साहित्यिक स्रोतों से भी ग्रामीण जीवन और गांवों की स्थिति के बारे में कुछ जानकारी मिलती है देश के ग्रामीण समाज की एक मुख्य विशेषता उसका अत्यधिक श्रेणीबद्ध स्वरूप था। लोग अपनी निवासिक स्थिति, जाति तथा पदों के आधार पर विभाजित और वर्गीकृत थे। यद्यपि उनकी भौतिक स्थिति में बहुत अन्तर था तथापि ग्रामीण समाज में उनका स्थान निर्धारित करने वाला मुख्य कारक उनकी भौतिक स्थिति नहीं होती थी।
मुगलकाल में स्थानीय किसानों का विभाजन मुख्यतः दो भागों में किया गया था-
रियायती और खुदकाश्त
गांव की सबसे बड़ी आबादी ऐसे किसानों की थी, जिनमें से अधिकांश खुद को गांव के मूल बाशिंदों के वंशज बताते थे। पुराने बाशिंदों के लिए प्रयुक्त संस्कृत शब्द स्थानिक था। महाराष्ट्र में ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला थानी शब्द संस्कृत शब्द से निकला था और दूसरा शब्द स्तलवाहक संस्कृत स्थलवासक से। इन लोगों के लिए अन्य शब्दों का भी प्रयोग किया जाता था - जैसे महाराष्ट्र में मीरासी और राजस्थान में गाव्वेती या गावेती।
स्थानिक किसानों का विभाजन रियायती और रैयती अर्थात विशेषाधिकार प्राप्त और साधारण में किया गया था। रियायती वर्ग में स्थानिक भू-स्वामी किसान आते थे जिनके लिए महाराष्ट्र में मीरासी और राजस्थान के कुछ हिस्सों में घारू - हाला शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। ऐसे किसानों के लिए फारसी में खुदकाश्त शब्द का अर्थ 'बैलों आदि (की खरीदारी) के लिए खुद पैसा देकर खेती का काम किसानों (रिआया) से करवाने वाला ' बताया गया है। कोश में अंत में कहा गया है कि 'यदि मालिक-ए-जमीन' अपने जमीन में खुद खेती करता है तो वह खुदकाश्त कहलाता है।'
इस प्रकार खुदकाश्त किसानों की विशेषताएँ- गांव में निवासी स्थिति, जमीन की मिल्कियत और अपने परिवार वालों की मेहनत के अलावा कुछ उजरती मजदूरों की सहायता से अपनी जमीन में खेती करना खुद काश्त किसानों को कुछ छूट भी दी गई थी, जैसे वह मालगुजारी तो रियायती दर से अदा करता ही था। साथ ही विवाह कर आदि विभिन्न शुल्कों से भी उसे मुक्त रखा गया था। इसके अलावा, यदि खुद काश्त का गांव में एक ही घर होता था तो वह घरी या गृह कर भी नहीं देता था।
डब्ल्यू डब्ल्यू० हंटर के अनुसार - 'खुद- काश्त अधिकार एक मूल्यवान अधिकार था, सो केवल इसीलिए नहीं कि उसका मतलब आर्थिक सुविधा होती थी, बल्कि इसलिए भी कि उससे सामाजिक रुतबा हासिल होता था। स्थानिक किसान ग्रामीण बिरादरी के संचालक या भद्रलोक होते थे।'
उन्हें बहुत-सी और सुविधाएँ भी प्राप्त होती थीं-जैसे वे गांव की चरागाहों और जंगलों का मनचाहा उपयोग कर सकते थे, तालाबों और उनमें पलने वाली मछलियों का इस्तेमाल कर सकते थे और गांव के चाकर और वहाँ के ओहदेदारों की सेवाओं का लाभ उठा सकते थे।
राजस्थान और शायद देश के कई अन्य हिस्सों में भी विशेषाधिकार प्राप्त लोगों या रियायतियों में खुद काश्त के अलावा ऊँची जातियों के लोग, जैसे ब्राह्मण, राजपूत और महाजन (बनिया) और साथ ही पटेल, चौधरी, कानूनगो, पटवारी वगैरह स्थानीय ग्रामाधिकारी (ओहदेदार) भी शामिल थे, यद्यपि इनमें से भी काफी लोग शायद खुद काश्त समूह के ही रहे होंगे।
देश के विभिन्न भागों में खुदकाश्त किसानों के लिए अलग दस्तूर या कर सम्बन्धी नियम थे। दस्तावेजों के अनुसार, राजस्थान में इन वर्गों के लोग पैदावार का चौथाई भाग मालगुजारी में देते थे, जबकि आम दरें चौथाई से आधा थीं। यहाँ एक बात ध्यान देने वाली है कि जाति-विषयक निषेध के कारण ब्राह्मण स्वयं खेती नहीं करते थे, बल्कि उजरती मजदूरों से करवाते थे।
पाहीकाश्त या बाहरी किसान
खुद- काश्तों या भूस्वामी किसानों (मालिक - ए - जमीन) को कभी - कभी सभी स्थानिक किसानों का पर्याय मान लिया जाता है, जो गलत है। उन्हें पाहियों या पाइ - काश्तों का उल्टा भी बताया जाता है। 'पाही शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता था जो बंजर भूमि में खेती करने अथवा किसी उजड़ गए गांव को फिर से आबाद करने या नए गांव बसाने के लिए पड़ोस के गांवों या परगनों से आकर बसते थे। अनेक अवसरों पर पाहियों को रियायती दरों पर पट्टे दिए जाते थे, जिन्हें पूरी दर से तीसरे या पांचवे साल या उससे भी बाद में अदायगी करनी पड़ती थी। विभिन्न ऐतिहासिक ग्रन्थों से इस बात की जानकारी मिलती है कि पूर्वी राजस्थान के मलारणा परगने के मेहराजपुर गांव को, जो बरसात न होने और ताल-कूपों के सूख जाने से उजड़ गया था, फिर से बसाने के लिए वहाँ के पुराने पटेल से वहाँ बसने और यह वचन देने को कहा गया कि वह गांव की पूरी जमीन में खेती करवाएगा। उसे पैदावार के एक तिहाई हिस्से पर तीन साल का पट्टा दिया गया। जो पाही- काश्त उस गांव में आए उन्हें चालू वर्ष में एक तिहाई पैदावार की अदायगी की शर्त पर पट्टे दिए गए।
मुगलकालीन ऐतिहासिक ग्रन्थों से इस बात की जानकारी मिलती है कि परिस्थितियों के अनुसार, ऐसी रियायत की दरों और अवधियों में अतंर हो सकता था। इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि जब पाहियों के पास खेती के अपने उपकरण नहीं होते थे तब उन्हें राज्य अथवा गांव के साहूकार (वोहरा) की ओर से हल, बैल, बीज, खाद और पैसा सुलभ कराया जाता था। जब तक वे भूराजस्व की अदायगी करते रहते थे तब तक उन्हें जमीन पर काबिज रहने दिया जाता था।
अकाल आदि प्राकृतिक कारणों अथवा युद्ध स्थानीय अत्याचार वगैरह मानव - सृजित कारणों से किसानों के एक गांव को छोड़कर दूसरे में जा बसने का सिलसिला पूर्ववर्ती काल से ही चला आ रहा था। इसका उल्लेख सोलहवीं सदी में हिन्दी कवि तुलसीदास ने किया। यह एक पुराना रिवाज था कि किसान अपनी अवस्था में सुधार करने के लिए, जैसे कोई नया गांव बसाने या किसी पुराने गांव में कृषि का विस्तार करने अथवा उजड़े गांव को फिर से बसाने के लिए, अपने गाँव का त्याग कर देते थे।
मुगलकाल में पाहीकाश्तों की स्थिति
ग्रामीण समाज स्थिर और अपरिवर्तनशील नहीं था। नए गांव बसने पर भी गांव की संरचना में कोई बदलाव नहीं आता था। ऐतिहासिक स्रोतों से इस बात की जानकारी मिलती है कि नया गांव उसी संरचना के आधार पर बनाया जाता था जिस पर पुराना गांव बसा हुआ था। अशांति के कालों में पहियों की संख्या में निश्चय ही वृद्धि होती होगी। अठारहवीं सदी में ऐसा देखा जा सकता है।
कभी - कभी पाही दलितों के वर्ग से उभरते थे, क्योंकि ये लोग इस आशा में नए या उजड़े गांवों में आ जाते थे कि वहाँ जिस जमीन में ये खेती शुरु करेंगे उस पर इन्हें स्वामित्व प्राप्त हो जाएगा। सामाजिक निषेधों के कारण अपने गावों में जमीन का स्वामित्व प्राप्त करना इनके लिए आमतौर पर असंभव होता था। लेकिन कई क्षेत्रों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि दलितों को भूस्वामी बनने की सुविधा दी गई।
पाहियों को अस्थायी या प्रवासी मजदूर मानना सही नहीं होगा, क्योंकि उनमें से अधिकांश जिस गांव में वे जाते थे उसमें बस जाते थे, और एक-दो पीढ़ियों के दौर में वे स्थानिक किसानों के समूह में खप जाते थे।
|
- प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
- प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
- प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
- प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
- प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
- प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
- प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
- प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
- प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
- प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
- प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
- प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
- प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प